स्वास्थ्य-चिकित्सा >> चमत्कारिक जड़ी-बूटियाँ चमत्कारिक जड़ी-बूटियाँउमेश पाण्डे
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क्या आप जानते हैं कि सामान्य रूप से जानी वाली कई जड़ी बूटियों में कैसे-कैसे विशेष गुण छिपे हैं?
ब्राह्मी
ब्राह्मी के विभिन्न नाम
हिन्दी में- ब्राह्मी, ब्रह्मी, वामी, संस्कृत में- मण्डूकपणी, बंगला में- विर्मि, मराठी में- ब्राह्मी, गुजराती में- ब्राह्मी, कन्नड़ में- औदेगल, तेलुगु में- शम्ब्रनीचेट्ट, तमिल में वीमी, फारसी में- जर्णव, अंग्रेजी में- Indian pennywort, अंग्रेजी- Hydrocotylasiatica (cintella hydrocotyl)
यह वनस्पति जगत के Umbelliferae कुल की सदस्य है।
ब्राह्मी का संक्षिप्त परिचय
ब्राह्मी भारत के शीत प्रधान एवं आद्र प्रदेशों में पायी जाती है। हिमालय की तराई, बिहार, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश तथा गुजरात में भी यह पर्यात मात्रा में होती है। सामान्यत: यह नदी-नालों के किनारों पर, खेतों की नमीदार झाड़ियों पर, घरों में तथा नमीदार बगीचों में पायी जाती है। एक बार लग जाने पर यह कठिनता से दूर होती है। वर्षा काल में यह स्वयं सड़-गल जाती है और शीत ऋतु में स्वयं पैदा होती है। ग्रीष्म एवं बसंत ऋतु में यह पुष्पित एवं फलित होती है अर्थात् बसंत में इसमें फूल खिलते हैं तथा फल बनते हैं।
इसके पत्ते छोटे, गोल, अनीदार एवं अतिअल्प मांसल होते हैं। पत्तों का अग्रभाग मण्डलाकार होता है। पत्तियों के वृन्त पतले होते हैं। ध्यानपूर्वक देखने पर पत्तों में अतिसूक्ष्म चिह्न भी दिखाई देते हैं। इसका तना पतला होता है जिसकी गठानों से पतली-पतली धागे के समान शिखायें निकलकर मिट्टी में प्रविष्ट होती हैं। इसके पुष्प छोटे, सफेद तथा पांच दलपत्रों वाले होते हैं। पूंकेसर 4 होते हैं, जिनमें 2 छोटे तथा 2 बड़े होते हैं।
सम्पूर्ण पौधा स्वाद में तिक्त होता है। ब्राह्मी के दो भेद होते हैं- 1.मण्डूकपर्णी तथा 2. जलनीम या मण्डूकी। इनमें से मण्डूकपणी यहाँ-वहाँ घास के साथ स्वयं भूमि में पैदा होती है। यह जमीन पर फैली हुई लता होती है। इसकी जड़ें भी तने में उपस्थित ग्रंथियों से ही निकलती हैं। इसके पत्ते बड़े, गोल तथा बड़े डंठल वाले होते हैं। इसके पुष्प लोहित वर्ण के होते हैं। पत्ते चबाने पर एक विशिष्ट स्वाद एवं गंध का अनुभव होता है। इसके दूसरे भेद में पत्ते ब्राह्मी की तरह ही होते हैं, केवल वे कुछ छोटे होते हैं तथा गोल एवं समतल होते हैं। पत्र का क्षेत्र तेलीय प्रकार का चिकनापन लिये हुये होता है। पत्तों का स्वाद कषाय मधुर होता है।
आयुर्वेदानुसार ब्राह्मी एक शीतल, दस्तावर, कड़वी, हल्की, मेधा को हितकारी, कसैली, मधुर, आयु को बढ़ाने वाली, स्वर को हितकारी, स्मरणशक्तिवर्द्धक एवं कोढ़, पीलिया, प्रमेह इत्यादि रोगों में हितकारी वनस्पति है।
ब्राह्मी का वास्तु में महत्त्व
घर की सीमा में ब्राह्मी का होना शुभ होता है। इसके घर की सीमा मंइ रहने से किसी भी प्रकार का अशुभत्व नहीं होता है।
ब्राह्मी के औषधीय महत्व
स्मरण शक्ति बढ़ाने वाली औषधियों में ब्राह्मी का विशेष रूप से प्रयोग किया जाता है। आयुर्वेद की अनेक औषधियों में ब्राह्मी का विशेष रूप से प्रयोग किया जाता है। यहाँ पर ब्राह्मी के कुछ विशेष उपायों के बारे में बताया जा रहा है, जिनका प्रयोग करके आप लाभ ले सकते हैं:-
> मानसिक शक्तिवर्द्धन के लिये यह आसान सा प्रयोग किया जा सकता है- 50 ग्राम शुष्क ब्राह्मी, 50 ग्राम बादामगिरी तथा 10 ग्राम कालीमिर्च लेकर इन्हें पानी के साथ अच्छी प्रकार से घोंट लें। इसके बाद लगभग 3-3 ग्राम की गोलियां बनाकर छाया में सुखा लें। इसकी एक-एक गोली सुबह तथा रात्रि सोने से पूर्व 200 मिली. हल्के गर्म दूध के साथ सेवन करने से दिमागी शक्ति में वृद्धि होती है। छात्रों के लिये यह प्रयोग अत्यन्त लाभदायक है।
> ब्राह्मी का पंचांग चूर्ण प्राप्त करें। इसे बारीक पीसकर छान लें। 200 मिली. हल्के गर्म दूध में आधा चम्मच ब्राह्मी पाउडर मिलाकर सेवन करने से स्मरणशक्ति में वृद्धि होती है।
> जो व्यक्ति अनिद्रा के शिकार हैं, उन्हें यह प्रयोग करना चाहिये- 200 मि.ली. दूध में एक चम्मच अथवा 5 ग्राम ब्राह्मी चूर्ण मिलाकर सेवन करें। अगर ताजी ब्राह्मी मिलती है तो इसका 5-10 ग्राम रस का प्रयोग किया जा सकता है। इसके सेवन से रात्रि में ठीक से नींद आती है और तनाव से मुक्ति प्राप्त होती है।
> 3 ग्राम ब्राह्मी में 5 दानें कालीमिर्च के मिलाकर जल के साथ ठीक से घोंट लें। इसका 2-3 बार एक दिन में सेवन करने से सिरदर्द दूर होकर स्मरणशक्ति में वृद्धि होती है।
> बालों की समस्याओं को दूर करने में भी ब्राह्मी के अनेक प्रयोग हैं। ब्राह्मी से सिद्ध तेल की सिर में मालिश करने से बाल मजबूत बनते हैं, साथ ही उनकी चमक में भी वृद्धि होती है। बालों की वृद्धि भी होती है। यह तेल घर में भी सिद्ध किया जा सकता है।
> ब्राह्मी के अग्रांकित प्रयोग से बालों का झड़ना रुक जाता है। इस प्रयोग के अन्तर्गत ब्राह्मी के पंचांग का चूर्ण एक चम्मच की मात्रा में लेकर जल से सुबह-शाम सेवन करें। 2-4 सप्ताह तक यह प्रयोग करने से आशाजनक लाभ की प्राप्ति होगी।
> शरीर में दाह की समस्या हो तो यह प्रयोग करें- 5 ग्राम ब्राह्मी तथा आधा चम्मच पिसा अथवा साबुत धनिया एक कप जल में भिगो दें। प्रात: उसी जल में दोनों को अच्छी प्रकार से पीस कर छान लें। इसमें स्वाद के अनुसार मिश्री भी पीस कर मिला लें और पी जायें। कुछ दिन के सेवन से दाह में लाभ प्राप्त होता दिखाई देता है।
> टॉनिक के रूप में भी इसका प्रयोग किया जा सकता है। ब्राह्मी के पत्तों के चूर्ण की 5 ग्राम मात्रा को सुबह के समय दूध के साथ लेते हैं तो उससे शरीर में नवीन ऊर्जा का संचार होता है। न केवल यह प्रयोग ऊर्जा देता है बल्कि इसे नित्य सम्पन्न करने वाले की बुद्धि एवं स्मरणशक्ति में भी पर्यात विकास होता है। अग्नि पुराण में वर्णित है कि ब्राह्मी का नित्य जल से ही सेवन करने वाले की आयुष्य दीर्घ होती है।
> मूत्र अवरोध की समस्या से मुक्ति में भी ब्राह्मी का उपयोग लाभ देता है। कई लोगों को खुलकर पेशाब नहीं होता है अथवा उन्हें बूंद-बूंद पेशाब उतरता है या फिर पेशाब करने के तुरन्त पश्चात् पुन: पेशाब करने हेतु दबाव बनता है, ऐसे लोगों को ब्राह्मी के पत्तों का स्वरस लगभग 10 ग्राम मात्रा में 4-6 दिनों तक पीना चाहिये। यदि स्वरस निकालने में असुविधा हो तो इसके लगभग 50 पत्तों को भली प्रकार से पीसकर एक कप भर जल में घोलकर पीना चाहिये। ऐसा करने से उपरोक्त वर्णित मूत्र विकार समाप्त होते हैं।
> गले की आवाज में मिठास बढ़ाने हेतु नित्य कुछ दिनों तक ब्राह्मी की पत्तियों को खूब चबा-चबाकर उसका रस गले में उतारना चाहिये। इस हेतु एक बार में इसकी 20-30 पत्तियों को लेना चाहिये। पत्तियों के स्थान पर इसकी जड़ को भी चूसा जा सकता है। चमत्कारिक प्रयोग है।
> छोटे-छोटे बच्चों को छाती में कफ जम जाने से वे काफी परेशान हो उठते हैं। ऐसी स्थिति में आप जो भी डॉक्टरी उपचार करवा रहे हों वे करायें किन्तु उसी के साथसाथ यह भी प्रयोग करें तो शीघ्र लाभ की प्राप्ति होगी। ब्राह्मी के कुछ पौधों को लेकर उन्हें खरल में अथवा सिलबट्टे पर भलीभांति पीस लें।फिर इस चटनी को किसी कटोरी में लेकर सहन करने योग्य गर्म कर इसका लेप बच्चे की छाती पर कर दें। ऐसा मात्र 2-3 बार करने के बाद ही बच्चे की छाती में जमा हुआ कफ बाहर आ जाता है। > कब्ज की समस्या को दूर करने के लिये ब्राह्मी का उपयोग लाभ करता है। जिस व्यक्ति को प्रायः कब्ज रहती हो उसे ब्राह्मी की मूल का स्वरस एक ग्राम केवल एक गिलास जल में मिलाकर शयन के दो घंटे पूर्व देना हितकर होता है। इस प्रयोग को 2-3 दिनों तक करने से कब्ज की समस्या दूर होती है तथा पेट साफ रहता है।
> वीर्य में शुक्राणुओं की कमी सन्तान होने में बाधक होती है। शुक्राणुओं की वृद्धि एवं पुष्टि करने हेतु ब्राह्मी के पंचांग की 10 ग्राम मात्रा को दूध और मिश्री के साथ नित्य कुछ दिनों तक लेने से लाभ होता है। इस प्रयोग के परिणामस्वरूप वीर्य गाढ़ा भी होता है तथा व्यक्ति में वीर्य को रोकने की क्षमता बढ़ती है।
> अपस्मार रोग के रोगी को ब्राह्मी के पत्तों का स्वरसनित्य कुछ दिनों तक शहद के साथ देने से लाभ होता है। उसको आने वाले दौरों का अन्तराल शनै:-शनै: बढ़ने लगता है।
> ब्राह्मी के पंचांग का काढ़ा लेने से वातरोगों में लाभ होता है। इस हेतु ब्राह्मी के 10-20 पते लेकर उन्हें एक गिलास भर जल में इतना उबालें कि जल की मात्रा तीन-चौथाई रह जाये। इसे छान कर पीना ही पर्यात है। इस प्रयोग को लगातार कुछ दिनों तक करना पड़ता है।
ब्राह्मी का दिव्य प्रयोग
जिस समय ब्राह्मी के पौधे पुष्पयुक्त हों उस समय उसके 50 से 100 ग्राम पौधे एकत्रित कर छाया में सुखा लें। सुखाने के पश्चात् उन्हें पीसकर महीन चूर्ण बना लें। इनसे बनने वाले चूर्ण को अलसी के 200 ग्राम तेल में मिला दें। इस मिश्रण को एक लकड़ी के पाटे पर सूर्य के प्रकाश में तथा चन्द्रमा की चाँदनी में 15 दिनों तक पड़ा रहने दें अर्थात् तेल को शीशी में डालकर उसे पाटे पर शुक्लपक्ष की एकम से लेकर पूर्णिमा तक भवन की छत पर खुले में रख दें ताकि उस पर सूर्य की किरणें दिन के समय और चन्द्रमा की किरणें रात्रि के समय पड़ें। 15 दिनों के पश्चात् इस तेल को घर में सुरक्षित रख दें। अब, नित्य रूई की एक फूलबती बनाकर इस तेल में डुबोकर बच्चे जहाँ पढ़ाई करते हों वहाँ इसका दीपक लगा दें। इससे बच्चों को पढ़ाई करने पर काफी सफलता मिलती है, बच्चों के स्वभाव में उत्तम सकारात्मक परिवर्तन आता है। बच्चों की सफलता तथा उनके व्यवहार को अच्छा करने हेतु यह प्रयोग श्रेष्ठ है।
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- उपयोगी हैं - वृक्ष एवं पौधे
- जीवनरक्षक जड़ी-बूटियां
- जड़ी-बूटियों से संबंधित आवश्यक जानकारियां
- तुलसी
- गुलाब
- काली मिर्च
- आंवला
- ब्राह्मी
- जामुन
- सूरजमुखी
- अतीस
- अशोक
- क्रौंच
- अपराजिता
- कचनार
- गेंदा
- निर्मली
- गोरख मुण्डी
- कर्ण फूल
- अनार
- अपामार्ग
- गुंजा
- पलास
- निर्गुण्डी
- चमेली
- नींबू
- लाजवंती
- रुद्राक्ष
- कमल
- हरश्रृंगार
- देवदारु
- अरणी
- पायनस
- गोखरू
- नकछिकनी
- श्वेतार्क
- अमलतास
- काला धतूरा
- गूगल (गुग्गलु)
- कदम्ब
- ईश्वरमूल
- कनक चम्पा
- भोजपत्र
- सफेद कटेली
- सेमल
- केतक (केवड़ा)
- गरुड़ वृक्ष
- मदन मस्त
- बिछु्आ
- रसौंत अथवा दारु हल्दी
- जंगली झाऊ